Sunday, February 21, 2016

जिसे आना ही था....!!!

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मृत्यु से मत डरो
बस मर जाओ!!!

प्रतीक्षा में सदियां
यों ही गुजरी हैं
इसे आना ही था
गुजर जाने दो

मृत्यु से मत डरो
बस मर जाओ!!!

Wednesday, February 17, 2016

मृत्युदण्ड : राज्य मारता नहीं, बस बेसहारा छोड़ देता है

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राजीव रंजन प्रसाद

दमयति गोपाल की मधुबाला है। दमयति मधुबाला के बारे में कुछ नहीं जानती, फिल्में भी नहीं देखी; लेकिन इतना समझती है कि गोपाल उसकी जिस सौन्दर्य पर रीझता है; शरीर-सौष्ठव पर आकर्षित होता है; वह मधुबाला के मेल की है।

दमयति 10 तक पढ़ी है। उसके बाद से चुल्हा फूँक रही है। गोपाल उसे रानी बनाकर रखने की बात करता है। जब वह कहता है कि उसके पास नीली रोशनी वाली ऐसी आग है जो बूझती नहीं और धुँआ भी नहीं छोड़ती, तो दमयति चुप रह जाती है। पर भीतर से उसकी जो खुशी फूटती है उसका कोई परवार नहीं।  

शहर से दूर जीवन है और वहाँ रहने वाले लोग एलियन नहीं हैं; यह शहर के लोग कब मानेंग; गोपाल सोचता है। गोपाल छह माह पहले मुम्बई आया है। ऐसे मकान में रहता है जहाँ चारों ओर गंदगी पसरी है; लेकिन बिजली और टेलीविज़न हर घरों की शान हैं। गाँव के दो लड़के और एक सम्बन्धी जिस किराए का मकान लेकर रहते हैं उसी में गोपाल भी रहता है। हर हफ्ते मुर्गे-मछली-अंडे बनते हैं और सब चाव से खाते हैं। मकान में शौचालय की व्यवस्था नहीं है और वह सार्वजनिक शौचालय में जाता है। नहाने के लिए सप्लाई के वाटर वाले नलकूप पर नहाना होता है। कोई आड़ नहीं, बस कपड़ा उतारा और जंघिए पर होकर हर-हर गंगे। गोपाल जिस कंपनी में काम करता है; वह धागा कम्पनी है। 9 हजार पगार मिलते हैं। हाथ में हर महीने मुंशी आठ हजार दो सौ देता है। बाकी रकम कंपनी अपने पास रखती है।

दमयति का फोटो अपने कमरे में गोपाल नहीं लगा सकता है। साथ के लड़के किसिम-किसिम का सवाल करेंगे। इसलिए वह मधुबाला के चित्र वाले अखबारी कागज दीवार पर चिपकाये हुए है। खाना बनाने की जगह पर उसने जानबूझकर मधुबाला को फोटुवा नहीं चस्पा किया है। गोपाल की साध है कि वह दमयति से विवाह कर ले और अपने साथ मुम्बई ले आए; फिर यहीं बस जाए। दमयति चालू-पूर्जा है। वह भी माला गूंथने या साड़ी के कोर पर चमकीले तार जोड़ने का काम कर लेगी। आमदनी इससे बढ जाएगा। आस-पास की औरतों यह सब बड़े मौज में करती हैं। साथ के लड़कों में दो शादीशुदा हैं। वे मेहरारू के लिए अन्दर ही अन्दर कुढते हैं; लेकिन कह नहीं पाते। एक की तो चार महीने पहले शादी हुई है। गाँव पर लोग बहुरिया विदाई करा के ले आए हैं। वह अपनी कन्या को बेतरह याद करता है। कभी-कभी झल्ला भी उठता है। लेकिन गरीब आदमी तो मरता क्या न करता कि स्थिति में जीता है। अमीरी-गरीबी का अंतर उसे नहीं बुझाता है। वह बहुत पढ़ा-लिखा नहीं है। वह बस इतना जानता है कि महीना भर जांगर खटाने के बाद जो मिले उसमें से एक बड़ी रकम घर पर भेज दे। पिताजी को दमा है। माँ गठिया से परेशान है। और वह घर का सारा ज़मीन रेहन पर रख आया है।

गोपाल इतना अवश्य जानता है, गरीब मरता है या मारा जाता है। यानी निर्धन आदमी के लिए भारत में एक ही विधान है; वह है मृत्युदण्ड। गोपाल मरना नहीं चाहता है। इसलिए मुम्बई आ गया है। यह माया-नगरी है। यह महानगर सबका पेट पालता है। हर एक की अर्जी सुनता है। गोपाल इसी आशा और विश्वास से यहाँ आया है। गोपाल मृत्युदण्ड के खि़लाफ है। यह जु़मला ग़लतहै। जिसके पास कुछ नहीं है वह किसी के खिलाफ़ क्या होगा-ठेंगा। टीबी पर गोपाल न्यूज़ नहीं देखता है। वह डिस्कवरी चैनल देखता है। उसमें उसे अच्छा यह लगता है कि उस पर दिखाई देते जानवर या छोटे-बड़े जीव युद्ध नहीं करते, मारकाट नहीं करते, गाली-गलौच और दंगा-फसाद भी नहीं करते हैं। इसलिए उसे यह चैनल देखना सुहाता है, निक लगता है।

फिर गाने वाला चैनल भी गोाल को मजा देता है। पिछले महीने चारों ने मिलकर 1200 रुपए का साउंड बाॅक्स लिया है। सब गाना बजाते हैं। भोजपुरी गीत-संगीत भी। कमरिया करे लचालच...जैसे बोल के गाना उसे जमते है। वह गाना सुनते हुए बेसुध हो जाता है। इसी समय दमयति उसके नींद में आती है और वह सपने में पँवरने लगता है।..... 

Tuesday, February 16, 2016

वाह! रजीबा वाह!

'मैं घासलेटी मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देता, जी धन्यवाद!'
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उन्होंने फोन किया और तय किया की जेएनयू प्रकरण पर रजीबा की राय पूछी जाए। इस लड़के का माथा न घूमा और न सीधा हुआ; बस उसने तपाक से कह दिया-'मैं घासलेटी मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देता, जी धन्यवाद!'

पता नहीं रजीबा को इतना गुमान और गुरूर क्यों है, वही जानें। पर इतना तय है कि यह उसकी अपनी मौलिक पहचान है जिसे कोई नहीं छीन सकता। 

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...